शिवस्तुति पाठ केवल भक्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह साधक को भगवान शिव से आध्यात्मिक रूप से जोड़ने वाली अनूठी साधना है। प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनि और भक्त इस स्तुति के माध्यम से मानसिक शांति, आंतरिक शक्ति और शिव कृपा प्राप्त करते आए हैं

शिवस्तुति का ऐतिहासिक महत्व

कहा जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित शिवस्तुति को पढ़ने से तुरंत शिवकृपा प्राप्त होती है। इस स्तुति को श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त है और इसका पाठ हिंदी अर्थ सहित करने का महत्व और बढ़ जाता है।

·         आदि गुरु शंकराचार्य ने इस स्तुति के माध्यम से भगवान शिव के प्रति अनन्य भक्ति का स्वरूप प्रस्तुत किया।

·         स्तुति के प्रत्येक श्लोक में शिवभक्ति और आध्यात्मिक साधना का अद्भुत संगम दिखाई देता है।

शिवस्तुति पाठ की विधि

शिवस्तुति का पाठ करने से पहले भक्त को पूर्ण शुद्धता और श्रद्धा रखनी चाहिए।

1.      प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।

2.      शिवलिंग अथवा भगवान शिव की प्रतिमा के सामने दीपक धूप अर्पित करें।

3.      नमः शिवायमंत्र का जप करें और मन को शांत करें।

4.      अब भावपूर्वक शिवस्तुति पाठ आरंभ करें।

सोमवार और सावन माह में यह पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।

शिवस्तुति श्लोक और भावार्थ

श्लोक 1

रत्नैः कल्पितमानसं हिमजलैः स्नानं दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितम्‌ मृग मदामोदांकितम्‌ चंदनम॥

भावार्थ: भक्त अपने मन में भाव करता है कि भगवान शिव रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं। हिमालय के शीतल जल से उनका स्नान कराया जा रहा है और दिव्य वस्त्र अर्पित किए जा रहे हैं।

श्लोक 2

सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र घृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्‌॥

भावार्थ: मानसिक रूप से भक्त स्वर्णपात्र में खीर, दही और पंचविध भोग अर्पित करता है और अपनी भावना से शिवजी को प्रसन्न करता है।

श्लोक 3

छत्रं चामर योर्युगं व्यंजनकं चादर्शकं निर्मलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं नृत्यं तथा॥

भावार्थ: भक्त कल्पना करता है कि शिवजी के ऊपर छत्र लगाया गया है, उनके सामने वीणा, भेरी और मृदंग की ध्वनियां गूंज रही हैं और भक्त नृत्य कर साष्टांग प्रणाम कर रहा है।

श्लोक 4

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥

भावार्थ: भक्त मानता है कि उसकी आत्मा शिव हैं, बुद्धि पार्वती हैं और शरीर ही शिव का मंदिर है। उसका हर कार्य भगवान शिव की पूजा है।

श्लोक 5

कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्‌।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥

भावार्थ: भक्त भगवान से अपने सभी अपराधों के लिए क्षमा मांगता है और शिवजी को करुणा का सागर कहकर वंदन करता है।

शिवस्तुति पाठ के लाभ

1.      मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।

2.      जीवन से नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मकता का संचार होता है।

3.      पारिवारिक सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।

4.      साधक का मन एकाग्र होकर ध्यान और साधना में उन्नति करता है।

मान्यता है कि सावन माह और सोमवार के दिन इसका पाठ करने से भगवान शिव विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।

शिवस्तुति पाठ और भक्ति साधना का संबंध

शिवस्तुति केवल मंत्रों का उच्चारण नहीं है, बल्कि यह भक्ति और ध्यान का अद्भुत संगम है। जिस प्रकार मां कुशमांडा देवी की उपासन (Kushmanda devi) साधक को ऊर्जा और आशीर्वाद देती है, उसी प्रकार शिवस्तुति साधक को आंतरिक शक्ति प्रदान करती है।

साथ ही, दिवाली और धनतेरस जैसे पावन अवसरों पर भी श्रद्धालु